तू बना मुक्कमल जहाँ खुद के लिए,
मेरा मुकम्मल जहाँ बसता है मेरे महबूब में,
तू बना मुक्कमल जहाँ खुद के लिए,
मेरा मुकम्मल जहाँ बसता है मेरे महबूब में,
ख्वाहिशें तुम्हे हज़ार हो पाने को,
मेरी ख्वाहिशें बसती है मेरे महबूब में,
खुश्बू हजार बसती है फूलों की बाग में,
कतरा कतरा महके जहाँ मेरे महबूब से।
चल रही है ये हवा,
या तुम मचल रही हो,
बिजलियों का कौंध है ,
या तुम मन मे गरज़ रही हो,
चाहती हो बरसना मुझ पर,
या मन ही मन बस डोल रही हो,
घनी रात है कैसी,
ऊपर से सर्द मौसम,
बरस भी जाओ ,
यूँ अठखेलियों से न करो सितम,
मैं भीग जाऊं अंतर्मन तक,
रहो मेरे हिय में बस तुम,
कैसे खेल खेलती हो,
आधी रात में तृष्णा छेड़ती हो,
तुम मनोज अनन्त हो,
मैं नश्वर धरा निवासी,
तुम हो प्रेम सकल शाश्वत,
मैं साधारण प्रेम विवश पुरुष पिपाशी,
माया सी काली जुल्फ़े तेरी,
आतुर सी मेरी दोनों नैना है,
कैसे कहूँ देर न कर,
बरसों प्रेम में तेरी सारी रैना है,
बस दो छीटें डाल मुझपर,
मस्त हवा पर न उड़ जाना तुम,
आधी काली रात मैं आयी हो,
मेरी ही बस मेरी रह जाना तुम,
बर्षा रूपी मेरी प्रियतमा,
मेरी हो मेरी ही रहना तुम।।
गोरखपुर के रहने वाले इस युवा के कविताएं लोगो द्वारा काफी सराहा जा रहा है |
लिख़ने वाले के बारे में
मेरा नाम मनोज कुमार निषाद है मेरा जन्म 15 मई 1990 को गोरखपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ। मैंने हाईस्कूल और इंटर की शिक्षा महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज से प्राप्त की। 2011 में B.com और 2019 में M. com की शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 2013 में मैंने ITM GIDA गोरखपुर से MBA, finance, HR(GOLD मेडलिस्ट) में डिग्री प्राप्त की । इसके साथ ही management और commerce में NET की परीक्षा उत्तीर्ण की है। वर्तमान समय में मैं ITM GIDA गोरखपुर के MBA डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर (FINANCE) के पद पर कार्यरत है।भविष्य में कवियों के फेहरिस्त में हमारा भी नाम हो यही कामना है।।
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